हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा का नंदा सप्तमी के अवसर पर नंदा को कैलाश विदा करनें के साथ ही समापन हो गया

हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा की वार्षिक लोकजात यात्रा का नंदा सप्तमी के अवसर पर नंदा को कैलाश विदा करनें के साथ ही समापन हो गया। मां नंदा को कैलाश विदा करनें के बाद डोली और छंतोली वापस लौट आई है। इससे पहले उच्च हिमालयी बुग्यालों में श्रद्धालुओं नें पौराणिक लोकगीतों और जागर के साथ हिमालय की अधिष्टात्री देवी माँ नंदा को कैलाश के लिये विदा किया। इस दौरान श्रद्धालुओं नें अपने साथ लाये खाजा-चूडा, बिंदी, चूडी, ककड़ी, मुंगरी भी समौण के रूप में माँ नंदा को अर्पित किये। गौरतलब है कि अब ठीक एक साल के बाद ही इस लोकोत्सव का आयोजन होगा। मान्यता है कि मां नंदा की लोकजात सम्पन्न होने के बाद जैसे ही डोली वापस लौटती है वैसे ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ठंड भी शुरू हो जाती है और भेड बकरी पालन करने वाले पालसी लोग भी धीरे-धीरे हिमालय से मैदानी इलाकों की ओर वापस लौटने लग जाते हैं। जबकि बुग्यालो में मौजूद हरी घास भी पीली होना शुरू हो जाती है। नंदा लोकजात के बाद कोई भी हिमालय के उच्च बुग्यालो में नही जाता है।