उत्तराखंड के अनिल चौहान को क्यों बनाया गया सीडीएस,पढ़े पूरा

देश के नए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस), लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (सेवानिवृत्त), सीमा से संबंधित मुद्दों पर एक एक्सपर्ट के रूप में जाने जाते हैं, उनके पास सेना का एक लंबा अनुभव भी है ।
चौहान एक लेखक भी हैं – उनकी पहली पुस्तक आफ्टरमैथ ऑफ ए न्यूक्लियर अटैक 2010 में प्रकाशित हुई थी, और उन्होंने अभी-अभी एक और किताब, मिलिट्री जियोग्राफी ऑफ इंडियाज नॉर्दर्न बॉर्डर्स पूरी की है।
61 वर्षीय जनरल तीन सेवारत प्रमुखों – जनरल मनोज पांडे, एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी और एडमिरल आर हरि कुमार से वरिष्ठ हैं। वह अपने पूर्ववर्ती जनरल बिपिन रावत – 11 गोरखा राइफल्स की उसी रेजिमेंट से हैं। चौहान 11 जीआर की 6वीं बटालियन से हैं, जबकि रावत 5/11 जीआर से थे। जून में सरकार द्वारा घोषित नए नियमों में कहा गया है कि सीडीएस की सेवा को 65 साल तक बढ़ाया जा सकता है। अगर ऐसा होता है, तो चौहान को छह सेना प्रमुखों के साथ काम करने मौका भी मिलेगा।
सैन्य मामलों के विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल शौकिन चौहान लेफ्टिनेंट जरनल अनिल चौहान को 45 वर्षों से जानते हैं। उनका कहना कि अनिल चौहान एक बेहतरीन सैन्य अधिकारियो में से एक हैं, उनके काम करने का अलग ही अंदाज है । वह परिपक्व, बुद्धिमान और केंद्रित है । वह सभी के उम्मीदों पर खरा उतरेंगे।
जनरल शौकिन चौहान ने कहा कि नए सीडीएस भारत की सीमा के मुद्दों को अन्य लोगों की तुलना में बेहतर समझते है, जो उनकी ताकत को जाहिर करता है, सरकार ने रावत के उत्तराधिकारी के रूप में सही व्यक्ति को चुना है। उन्होंने कहा कि वह अपने युवा दिनों में बास्केटबॉल में अच्छे थे, समय मिलने पर आज गोल्फ खेलते थे। भारतीय संस्कृति से उनका लगाव बहुत गहरा है ।
18 मई 1961 को जन्मे अनिल चौहान उत्तराखंड के पौड़ी जिले के रहनेवाले है सयोंग से जनरल रावत के बाद देश के नए सीडीएस लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान भी उत्तराखंड के रहने वाले हैं और उन्हें 1981 में 11 जीआर में कमीशन किया गया था।
वह समृद्ध परिचालन अनुभव से परिपूर्ण है । चौहान सितंबर 2019 से पूर्वी सेना के कमांडर थे और उन्होंने मई 2021 में अपनी सेवानिवृत्ति तक कार्यभार संभाला। उन्होंने सैन्य अभियानों के महानिदेशक (DGMO) के रूप में भी काम किया है, अपने 40 साल की सेवा के दौरान उत्तर-पूर्व में एक कोर और कश्मीर में एक डिवीजन की कमान भी संभाली है उन्होंने अंगोला में संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक के रूप में भी काम किया है।
एक वरिष्ठ सेवारत अधिकारी ने कहा, “सीमा संबंधी मुद्दों में अपने गहन अनुभव और गहन विशेषज्ञता के अलावा, वह एक आतंकवाद विरोधी विशेषज्ञ भी हैं। ऐसे में इसे ऐसे कहा जा सकता है कि जो मेज पर बहुत सारे अनुभव लाता है,
एक अन्य अधिकारी ने कहा कि उसी रेजीमेंट के अधिकारी के रूप में चौहान रावत के करीबी माने जाते थे, जो उन्हें बहुत सम्मान देते थे और उनकी विशेषज्ञता को महत्व देते थे।
अरुणाचल प्रदेश में चीन की सीमा के साथ एक सेना के अड्डे और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास सैन्य मदद के लिए एक प्रमुख सड़क का नाम जनरल विपिन रावत के नाम पर रखा गया है। उसका नाम रखने के पीछे
लेफ्टिनेंट जनरल चौहान को ही श्रेय जाता है । बता दे जब चीन के नियंत्रण रेखा पास भारतीय सेना ने सड़क तैयार की थी तब उसका उद्घाटन करनें के लिए लेफ्टिनेंट जनरल चौहान को बुलाया गया था। तब चौहान ने दिल्ली से उड़ान भरी और उस समारोह में शामिल होने के लिए किबिथु सैन्य शिविर पहुंचे।
यह रीमा-तातु क्षेत्र के एलएसी के पार चीनी सैनिकों की तैनाती को देखता है,उसका नाम बदलकर जनरल बिपिन रावत मिलिट्री गैरीसन कर दिया गया। यह सड़क वालोंग को बेस को जोड़ने वाली वही 22 किमी की सड़क थी, जहां 1962 के युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों ने चीन की युद्ध मशीनरी को रोक दिया था।
चौहान भविष्य के युद्धों और अभियानों के लिए सेना के संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए सैन्य सुधार की और आगे बढ़ेंगे। जनरल रावत की मृत्यु के बाद यह अभियान धीमे हो गए थे और सरकार अब उम्मीद करेगी कि चौहान तीनों सेवाओं के बीच आम सहमति बनाकर लंबे समय से प्रतीक्षित सैन्य सुधार को गति प्रदान करेंगे।