प्रदेशभर में आज इगास बग्वाल यानी बूढ़ी दीपावली धूमधाम से मनाई गई

प्रदेशभर में आज इगास बग्वाल यानी बूढ़ी दीपावली धूमधाम से मनाई जा रही है। आज के दिन घरों में विशेषकर राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में पूड़ी, स्वाली, पकोड़ी, भूड़ा और अन्य पारंपरिक पकवान बनाए जा रहे हैं। सुबह से लेकर दोपहर तक गोवंश की पूजा की गई। मवेशियों के लिए बाड़ी और पींडा से आहार तैयार किया गया। पर्वतीय जिलों में दीपावली के ठीक 11 दिन बाद इगास-बग्वाल मनाने की परंपरा है। इगास-बग्वाल के दिन आतिशबाजी के बजाय भैलो खेलने की परंपरा पहाड़ में सदियों पुरानी है। भैलो को चीड़ की लकड़ी और तार या रस्सी से तैयार किया जाता है। इसे खेलने वाले रस्सी को पकड़कर उसे अपने सिर के ऊपर से घुमाते हुए नृत्य करते हैं। माना जात है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी सभी के कष्टों को दूर करने के साथ सुख-समृद्धि देती है। मान्यता है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर पहाड़ों में 11 दिन बाद पहुंची थी। इसीलिए लोग दीपोत्सव के 11 दिन बाद इगास मनाते हैं। एक मान्यता यह भी है कि दीपावली के समय गढ़वाल के वीर माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में गढ़वाल की सेना ने दापाघाट, तिब्बत का युद्ध जीतकर विजय प्राप्त की थी। दीपावली के ठीक ग्यारहवें दिन गढ़वाल सेना अपने घर पहुंची थी। युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में लोगों ने उस समय दीपावली मनाई थी।